लेखक :
सुधाकर शहाणे
‘दो भटकते राही – ‘शंकर – जयकिशन’,
आ मिले मंज़िल पर – चंद्रवदन भट ऑफीस, मायानगरी बंबई,
दो दिलों की कश्ती आ लगी साहिल पर – ‘पृथ्वी थिएटर्स’,
मुस्कुराते जागे एक संग दो मुक़द्दर’ – राज साहब की फ़िल्म ‘बरसात’ में स्वतंत्र संगीत निर्देशन का मौका …
फिर …
‘२१ अप्रेल १९४९’ को बंबई के सिनेमा घरों की ओर जानेवाली सडकोंपर सिनेमा प्रेमियों की भीड उमडी थी, इसी दिन राज साहब की फिल्म ‘बरसात’ प्रदर्शित हुई थी, यह लोग बेताब थे, इस फ़िल्म के गीत पर्देपर देखने के लिए … एक युवा जोडीकी संगीत सफ़र की यह शुरुआत थी … फ़िल्म के शुरू होते ही श्रेय नामावली में (Titles) Music – Shankar – Jaikishan, Lyricist – Hasrat Jaipuri – Shailendra यह चार नाम पहली बार परदेपर दिखाई दिए, जो फ़िल्म का प्रमुख आकर्षण थे…’शंकर – जयकिशन’ इस नवोदित और युवा संगीतकार द्वयी का संगीत, और शैलेंद्र – हसरत इन नौजवां युवकों द्वारा लिखे गीत, उस दिन बहुचर्चित विषय बना था … इन चार युवकों नें हिंदी सिनेमा संगीत की दुनिया मे पहला कदम रखा था … ‘एस-जे’ ने इसी फिल्म से स्वतंत्र संगीत निर्देशन का ‘आगाज’ किया था … उस दिन शाम के ढलते ढलते ‘अंजाम’ यह था क़ि, युवा ‘एस-जे’ और उनकी धुनों से सजे गीत हर किसी के दिलमें जा बसे थे, साथ में ‘शैलेंद्र – हसरत जयपुरी’ जैसे युवा गीतलेखक, जो इन गीतों के रचनाकार थे … बंबई के साथ और बाद में जहां जहां बरसात प्रदर्शित हुई वहां उसे सफलता ही मिली…भारतवर्ष के तमाम संगीत शौकीन जो बदलाव चाहते थे, वोह ‘एस-जे’ लेकर आये थे हिंदी सिने संगीत में … नयी रचनाओं के साथ, नयी कर्णमधुर धुनों से सजे गीत लेकर …चार होनहार युवक, शंकर – हैदराबाद, जय – वंसदा (गुजरात), शैलेंद्र – मथुरा तो हसरत जयपुरी – ‘गुलाबी शहर’ जयपूर से बंबई आए थे … क़िस्मत आजमाने, आँखों में सपने सजाये, इस भूलभुलैय्या वाली मायानगरी में … और अपने पहले ही प्रयास में वें चारों सफल हुए थे.
‘बरसात में हमसे मिले तुम सजन तुमसे मिले हम बरसात में’,
‘जिया बेकरार हैं’,
‘हवा में उडता जाये’,
‘मैं जिंदगी में हरदम रोता’,
‘मुझे किसी से प्यार हो गया’,
‘अब मेरा कौन सहारा’,
‘छोड़ गए बालम’,
‘पतली कमर’,
‘मेरी आँखों मे बस गया कोई रे,
‘बिछड़े हुए परदेसी’…..
सब गीत बेहद लोकप्रिय हुए …
अपनें धुवांधार संगीत से ‘एस-जे’ की जोडी ने संगीत के मैदान पर पहली बाज़ी जीत ली थी, हर किसीं का मन मोह लिया था … ‘बरसात’ की अपार सफलता से तीन बातें एक साथ हो गयी थी, एक तो राज साहब को इस जोड़ी की क़ाबिलीयत पर यक़ीन हो गया था, वोह अपनी शुरुआती फिल्मों की असफ़लता के ‘चक्रव्यूह’ से बाहर निकल गए थे, उनकी करिअर को दिशा मिल गयी थी, दूसरी बात उन्होंने RK स्टुडियो खरीद लिया था, …तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी, ‘एस-जे’ के क़दम उस ‘संगीत सम्राट’ के सिंहासन की ओर बढ़ गए थे, जो उन्हें दूर से इशारा कर रहा था … और दूरी ज्यादह नहीं थी.
१९५१ में आवारा प्रदर्शित हुई और भारत की सीमा लाँघकर ‘एस-जे’ ने दूसरा क़दम सीधा विदेश में रक्खा … रूस, चीन, बल्गेरिया, टर्की के युवक रास्तों पर ‘आवारा हूँ’ यह गीत गाकर झूमने लगे,नाचने लगे थे … सभी गीत झक्कास थे, एस-जे अपनी दूसरी ही फ़िल्मसे ‘जगन्मान्य’ हो गए थे … तरोताज़ा, मदमस्त धुनें बनाकर वें विश्व में अपनी पहचान बना चुके थे … फिर संगीत प्रेमियों ने तुरंत उन्हें ‘संगीत सम्राट’ के सिंहासन पर बिठा कर उनकी ताज़पोशी कर दी थी.
‘आवारा हूँ’,
‘तेरे बिना आग ये चाँदनी’
‘घर आया मेरा परदेसी’,
‘दम भर उधर मुंह फेरे’,
‘हम तुझसे मोहब्बत करके सनम’
‘एक बेवफ़ा से प्यार किया’,
‘जबसे बलम घर आएं’,
‘आ जाओ तड़पते हैं अरमाँ’ ….
यह गीत लोकप्रियता की चरम सीमा लांघ गए थे …
‘बरसात’, ‘आवारा’ के बाद अगले १० साल में उनकी ‘आह’, ‘पतिता’, ‘शिकस्त’, ‘दाग’, ‘मयुरपंख’, ‘श्री ४२०’, ‘राजहठ’, ‘पटरानी’, ‘न्यू दिल्ली’, ‘बसंत बहार’, ‘चोरी चोरी’, ‘कठपुतली’, ‘छोटी बहन’, ‘हलाकू’, ‘यहूदी’ आदि फिल्में प्रदर्शित हुईं और वें इन फिल्मों में बेहतर से बेहतरीन गीत पेश करते गए …
‘बसंत बहार’ का ख़ास जिक़्र करना चाहूंगा … यह फ़िल्म ‘LITMUS TEST’ थी और ‘एस-जे’ इसमें आसानी से अव्वल नंबर्स लेकर उत्तीर्ण हुए थे … इस फिल्म के सब गीत रागदारी पर आधारित थे, विभिन्न रागों का प्रयोग किया था और उन्हें इस प्रयोग में जबरदस्त कामयाबी मिली थीं.
‘केतकी,गुलाब,जूही,चंपक बन फूले’ – राग – ‘बसंत बहार’,
‘सूर ना सजे’ – राग – ‘पिलू बसंत’,
‘जा जा रे जा बालमवा’ – राग ‘झिंझोटी’,
‘नैन मिले चैन कहाँ’ – राग – ‘रागेश्री’,
‘दुनिया ना भाये मुझे’ – राग ‘तोड़ी’,
‘कर गया रे मुझपे जादू’ – राग ‘रागेश्री’,
‘बड़ी देर भयी’ – राग ‘दरबारी’
एस-जे का यह मुँहतोड़ और क़रारा जवाब था, उन लोगों को जो, उन्हें सिर्फ पश्चिमी ढंग की रचनाओं का संगीतकार मानते थे, जो एस-जे की क़ाबिलियत पर प्रश्नचिन्ह लगाते थे … ‘बसंत बहार’ के बाद यह लोग हमेशा के लिए ख़ामोश हो गए … ‘पटरानी’ की रचनाएँ भी इसी स्तर की थी, तो ‘हलाकू’ और ‘यहुदी’ में अरेबिक ढंग का संगीत था, जो उन फिल्मों की ज़रूरत थी… बसंत बहार के बाद एस – जे और खुल कर, आत्मविश्वास के साथ अपनी रचनाएँ पेश करने लगे … उनकी संगीतशैली में अब और ख़ुमार आया था …पश्चिमी, अरेबिक, और शास्त्रीय संगीत तीनों ढंग में उन्होंने अपनी रचनाएँ पेश की थी और संगीत रसिकों के लिए यह बेशक़ीमती उपहार था … परिपूर्ण अभ्यास, कठोर संगीत साधना से उन्होंने संगीतकला को नया आयाम दिया था, नयी पहचान दी थी …
‘एस-जे’ की इन फिल्मों के कुछ यादगार गीत …
‘पतिता’ – ‘याद किया दिलने कहाँ हो तुम, ‘है सबसे मधुर गीत वो’, ‘किसी ने अपना बनाके मुझको’ …
‘आह’ – ‘आजा रे अब मेरा दिल पुकारा’, ‘रात अँधेरी दूर सवेरा’, ये शाम की तनहाइयाँ’ …
‘श्री ४२०’ – ‘रमैय्या वस्तावैया’, ‘मेरा जूता है जापानी’, ‘इचक दाना बिचक दाना’, ‘प्यार हुआ इकरार हुआ’, ‘दिल का हाल सुनें दिलवाला’
‘दाग’ – ‘ए मेरे दिल कहीं और चल’,
‘शिकस्त’ – ‘जब जब फूल खिले’, ‘कारे बदरा तू ना जा’, ‘चमके बिजुरियां’
‘पटरानी’ – ‘चंद्रमा मदभरा,
‘बसंत बहार’ – ‘केतकी, गुलाब, जूही, चंपक बन फूले, सूर ना सजे,
‘राजहठ’ – ‘ये वादा करो चाँद के सामने’,
‘कठपुतली’ – ‘बोल री कठपुतली’
‘छोटी बहन’ – ‘जाऊँ कहा बता ए दिल’, ‘भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना’, मैं रंगीला प्यार का राही’ …
‘यहूदी’ – ‘ये मेरा दीवानापन है’, ‘मेरी जां मेरी जां’, ‘
‘हलाकू’ – ‘दिल का ना करना एतबार कोई’, ‘अजी चले आवो’, ‘आजा के इंतजार में’
‘चोरी चोरी’ – ‘आजा सनम मधुर चाँदनी में’, ‘पंछी बनू उडती फिरुं’,
‘अनाडी’ – ‘वो चांद खिला’, ‘सब कुछ सीखा हमनें ना सीखीं होशियारी’,
‘कन्हैया’ – ‘मुझे तुमसे कुछ भी ना चाहिये’, ‘
‘चोरी चोरी’ (१९५६) के अफ़लातून संगीत के लिए उन्हें ‘फ़िल्म फेयर पुरस्कार’ से सन्मानित किया गया …यह उनका पहला पुरस्कार था …शास्त्रीय संगीत के साथ पाश्चिमात्य,अरेबिक ऐसे सब संगीत प्रयोग सफल हुए थे … अब एस-जें के सामने मुक़ाबले में कोई खड़ा नही था, मुकाबला ख़ुद से ही था … संगीत साम्राज्य के वोही चक्रवर्ती सम्राट है इस बात को लेकर, अब किसी के मनमें कोई आशंका नहीं थी.
एस-जें का साज़गार तबला, हारमोनियम, सतार, बांसरी, ढोलक, डफली, मटका, सनई इन पारंपारिक वाद्यों के साथ पियानो, गिटार, अकॉर्डियन, व्हायलिन, मँडोलिन, इलेक्ट्रिक गिटार, सैक्सोफोन, इलेक्ट्रिक ऑर्गन, ट्रम्पेट, बोंगो, कोंगो ऐसी आधुनिक साजों से सजा था, इन अमोघ अस्त्रों का अपनी फिल्मों में चतुराई से प्रयोग करके एस-जें लगातार रसिकों के दिलों का वेध लेते रहे, उन्हें सम्मोहित करते रहे…
५० – ६० साजिंदे चक्रवर्ती सम्राट एस-जे के दरबार में हाज़िर हमेशा हाज़िर रहते थे … ‘दत्तू ठेका’ तो घर घर में पहुँच चुका था…साथ कविराज – हसरत यह दरबारी राजकवियों की जोडीद्वारा निरंतर बेहतरीन गीत निर्मिती हो रही थी.
१९६० से एस-जे पूरी सुरीली लय में थे, उनके द्वारा संगीतबद्ध की कई बेहतरीन फिल्में प्रदर्शित हुई. इनमें से कुछ प्रमुख थी,
‘जिस देश में गंगा बहती हैं’, ‘असली नकली’, ‘जब प्यार किसी से होता है’, ‘ससुराल’, ‘दिल अपना और प्रीत पराई’, ‘एक दिल सौ अफ़साने’, ‘आशिक़’, ‘कन्हैया’, ‘दिल एक मंदिर’, ‘जंगली’, ‘प्रोफेसर’, ‘दिल तेरा दीवाना’, ‘हमराही’, ‘जिंदगी’, ‘राजकुमार’, ‘संगम’, ‘लव्ह इन टोकियो’, ‘आरजू’, ‘जानवर’, ‘सूरज’, ‘तीसरी कसम’, ‘गबन’, ‘सांझ और सवेरा’, ‘आम्रपाली’, ‘अँन इव्हिनिंग इन पँरिस’, ‘दीवाना’, ‘दुनिया’, ‘मेरा नाम जोकर’, ‘प्रिंस’, ‘पहचान’, ‘ब्रह्मचारी’, ‘शिकार’, ‘रात और दिन’, ‘संन्यासी’, ‘अंदाज’ आदि
इन फिल्मों में उनके अप्रतिम धुनों से सजे गीतों से उनका संगीत साम्राज्य और बढ़ता गया … अजरामर गीतों से समृद्ध होता गया.
‘एस-जे’ के ‘फ़िल्म फेअर पुरस्कार –
१९५७ – चोरी चोरी, १९६० – अनाडी, १९६१ – दिल अपना और प्रीत पराई, १९६३ – प्रोफेसर, १९६७ – सूरज, १९६९ – ब्रम्हचारी, आख़री की ‘हॅट्रिक’ १९७१ – पहचान, १९७२ – मेरा नाम जोकर, १९७३ – बेईमान.
भारत सरकार द्वारा ‘पद्मश्री’ पुरस्कार से सन्मानित …
उनकी रागदारी पर आधारित कुछ रचनाएं …..
सदा सुहागिन राग – ‘भैरवी’
बरसात में हमसे मिले तुम सजन – बरसात
रमैय्या वस्तावैय्या – श्री ४२०
मेरा जूता हैं जापानी – श्री ४२०
तेरा जाना दिल के अरमानों का लूट जाना – अनाडी
दोस्त दोस्त ना रहा – संगम
तुम्हें और क्या दूं मैं – आयी मिलन की बेला
राजा की आयेगी बारात – आह
कैसे समझाऊँ बडी नासमझ हो – सूरज
जा जा रे जा बालमवा – बसंत बहार
राग – ‘शिवरंजनी’
आवाज़ दे के हमें – प्रोफेसर
बहारों फूल बरसाओ – सूरज
ओ मेंरे सनम दो जिस्म मगर – संगम
दिलके झरोंखें में तुझको बिठाकर – ब्रम्हचारी
चंद्रमा मदभरा – पटरानी
राग – ‘किरवाणी’
आई झुम झुम रात ये सुहानी – लव्ह मैरीज
गीत गाता हूं मैं – लाल पत्थर
याद ना जायें बीतें दिनों की – दिल एक मंदिर
तुम्हें याद करते करते – आम्रपाली
तुम जो हमारे मीत ना होते – आशिक
जब भी ये दिल उदास होता हैं – सीमा
मन रे तू ही बता क्या गाऊँ – हमराही
राग – ‘जयजयवंती’
मनमोहना बडें झूठें – सीमा
सूनी सूनी सांस के सितार पर – लाल पत्थर
राग – ‘दरबारी कानडा’
हम तुझसे मोहब्बत करके सनम – आवारा
तू प्यार का सागर है – सीमा
कोई मतवाला आया मेरे द्वारे – लव्ह इन टोकियो
छम छम बाजे रे पायलिंया – जाने अनजाने
राग – ‘झिंझोटी’
जा जा रे जा बालमवां – बसंत बहार
जाऊँ कहाँ बता ए दिल – छोटी बहन
तुम मुझे यूँ भूला ना पावोगे – पगला कहीं का
राग – ‘पहाडी’
मेरी अंखियों में बस गया कोई रे – बरसात
प्रीत ये कैसी बोल – दाग
मोरा नादान बालमा – उजाला
राग – ‘पिलू’
अजहूं ना आये बालमा – सांज और सवेरा
दिन सारा गुजारा तोरे अंगना – जंगली
मुरली बैरन भयी रे – न्यू दिल्ली
राग – ‘दरबारी’
राधिके तू ने बंसरी चुराई – बेटी बेटे
झनक झनक तोरी बाजे पायलियां – मेरे हुजूर
बड़ी देर भयी – बसंत बहार
मुझे तुमसे कुछ भी न चाहिये – कन्हैया
राग – ‘भूपाली’
नील गगन की छांव में – आम्रपाली
सायोनारा – लव्ह इन टोकियो
राग – ‘शुद्ध कल्याण’
रसिक बलमा – चोरी चोरी
मेरी मुहब्बत जवां रहेगी – जानवर
राग – ‘भीम पलासी’
देखो मेरा दिल मचल गया – सूरज
तड़प ये दिन रात की – आम्रपाली
राग – ‘रागेश्री’
मेरे संग गा गुनगुना – जानवर
कर गया रे मुझपे जादू – बसंत बहार
नैन मिले चैन कहाँ – बसंत बहार
राग – ‘जोगिया’
दिल एक मंदिर है – दिल एक मंदिर
राग – ‘यमन कल्याण’
एहसान तेरा होगा मुझपर – जंगली
राग – ‘चारुकेशी’
बेदर्दी बालमा तुझको – आरजू
राग – ‘पिलू-बसंत’
सूर ना सजे – बसंत बहार
राग – ‘तोडी’
दुनिया ना भाये मोहे अब तो बुला ले – बसंत बहार
राग – ‘तिलक कामोद’
हम तेरे प्यार में सारा आलम – दिल एक मंदिर
राग – ‘गारा’
उनके खयाल आयें – लाल पत्थर
राग – ‘बसंत बहार’
केतकी,गुलाब,जूही चंपक बन फूले – बसंत बहार
इनके अलावा ऐसे सेकड़ों बहारदार गीत रचे थे, एस-जे की जोडीने .. वाकई अचाट, अफाट, अफ़लातून, अगम्य, अतर्क्य काम था यह…रात रात जाग कर उन्होंने अपना साम्राज्य खड़ा किया था … सालोंसाल संगीत की उपासना कर, इस साधकद्वयीने साक्षात ‘माँ सरस्वती को प्रसन्न किया था, सर पर माँ का ‘वरदहस्त’ होने की वजह से, गीत को किस राग में बाँधना, किस गायक /गायिका से /किस नायक /नायिका के लिये गवाना, ५०-६० साजिंदे संभालना, उन्हें स्वरलिपी लिखकर देना यह सब बहुत जटिल था,लेकिन इन प्रतिभासंपन्न संगीत सम्राटोंनें उसे आसान बना दिया.
‘एस-जें’ का संगीत, उनके सभी गीत हमारे ह्रदय में सदा बसे रहेंगे…उनके कुछ विविधता भरे
गीत … मेरे और आपके भी पसंदीदा.
‘केतकी,गुलाब, जूही,चंपक बन फूले’ – पं.भीमसेन जोशी – मन्ना दा की जुगलबंदी अविस्मरणीय.
‘याद किया दिल ने’ – हसरत-एस-जे-लता-हेमंत कुमार का बेहद खूबसूरत, मनमोहक गीत.
‘आ अब लौट चले’ – व्हायलिन की झंकार, लताजी के आलाप हृदयस्पर्शी.
‘ये मेरा प्रेमपत्र पढ़कर’ – इस गीत का लुत्फ़ उठाना है तो, यह गीत परदेपर शुरू होने से पांच मिनट पहले ध्यान से देखियेगा फिर आप एस-जे के क़माल की, उनके करिश्मे की खुल कर दाद ज़रूर दोगे.
‘दोस्त दोस्त ना रहा’,
‘दिलके झरोखें में तुझको बिठाकर’ – एस-जे के सर्वोत्तम पियानो गीत.
‘हर दिल जो प्यार करेगा’ – त्रिकोणीय सुंदर प्रेमाभिव्यक्ती …
राधासे एकतरफ़ा प्रेम करनेवाले सुंदर का भरी महफिल में मुहब्बत का खुला इज़हार, ‘राधा’ संयम से वास्तव बयां करती है, तो ‘गोपाल’ सुंदर की दोस्ती के खातिर अपना और राधा का प्यार बख़ूबी छुपाता है, और जब वोह ‘अपना के हर किसीको बेगाना जायेगा’ कहता है, तब ‘संगम’ का अंत क्या होगा ? यह समझ में आता हैं.
‘आ गले लग जा’ – एप्रिल फूल के इस गीत की प्रस्तावना (Prelude) ८.३० मिनट की.
‘कैसे समझाऊँ बडी नासमझ हो’ – आशा – रफ़ी इन टॉप क्लासिकल फॉर्म.
‘देखो अब तो किसको नहीं है खबर’ – गिटार वादन झक्कास, आशा – रफ़ी साहब ने इसे मस्ती में गाया है, पश्चिमी ढंग का, ‘बीटल्स’ के “I wanna hold your hand” पर आधारित, लेकीन ‘ओरिजिनल’से भी बेहतरीन.
‘आजा रे आ ज़रा आ लहराके आ ज़रा आ’ – गिटार, वादन और रफ़ीसाहब का ‘मिडास टच’.
‘ये मेरा दीवानापन हैं’ – प्यार में टूटें हुए दिल की पुकार … तब भी और आज भी.
‘ये शाम की तनहाइयाँ’,
‘रसिक बलमा’,
‘तेरा जाना दिलके अरमानों का लूट जाना’,
‘बेदर्दी बालमा तुझको मेरा मन याद करता हैं’ – प्रेमी के विरह में प्रेमिका अक्सर इन्ही गीतों कों गुनगुनाती है.
‘ए फूलों की रानी बहारों की मलिका’,
‘ऐ गुलबदन’ – प्रेमिका की तारीफ़ प्रेमी आज भी ऐसे ही करता है.
‘अजी रूठकर अब कहाँ जाईयेगा’ – प्रेमिका की मीठी और सुरीली तकरार
‘प्यार आँखों से जताया तो बुरा मान गये’ – और ये प्रेमी की तकरार.
‘दिन सारा गुजारा तोरे अंगना’ – घर लौटने की इजाजत मांगती प्रेमिका.
‘होठों पे सच्चाई रहती हैं’ – भारतीय संस्कृती की पहचान, हर भारतीय इसे अभिमान से गायेगा, अव्वल नंबर का ‘मातृभूमि वंदन गीत’… कविराज ख़ुद डफली बजानें में माहिर थे, … राजसाब ने इसी डफली का साथ लेकर, अपनी फ़िल्म ‘जिस देश में गंगा बहती है’ का ‘राजू’ साकार किया था.
‘बहारों फूल बरसाओ’ – बँडपथक का अत्यंत प्रिय गीत, विवाह समारंभ में इसे अवश्य बजाया जाता है, हसरत साहब का पहला ‘फ़िल्म फेयर पुरस्कार’ विजेता गीत.
‘तुम्हें याद करते करते’ – सितार – सरोद लाजवाब, लताजी का अत्युत्कृष्ट गीत, कविराज – एस-जे का शायद आखरी.
‘सजन रे झूठ मत बोलो’ – ‘त्रिकालाबाधित सत्य’, ‘कविराज’ शैलेंद्र जी की सरल शब्दावली और एस-जे की सुरीली धुन, सदाबहार,अविस्मरणीय गीत.
‘आजा सनम मधुर चाँदनी में’,
‘दिल की नज़र से’,
‘वो चाँद खिला’ – शीतल चाँदनी रातों में घूमते हुए प्रेमी – प्रेमिकाओं के होठों पर होते है यह प्रेमगीत.
‘सब कुछ सीखा हमने ना सीखी होशियारी’ – असामाजिक तत्वों पर कविराज जी का प्रहार … यहां होशियारी का अर्थ मक्कारी होता हैं … इस देश के करोड़ो ईमानदार लोगों का कालजयी गीत … अकॉर्डियन पीसेस जबरदस्त.
‘हम भी है तुम भी हो’ – ‘सत-असत’ दोनो पहलू दर्शानेवाला गीत, कविराज जी की ‘प्रगल्भता’ लफ्जों में, एस- जे की ‘प्रतिभा’ धुनों में दिखाई देती हैं …एक बेहतरीन गीत जो, आज भी हृदय में बसा हुआ हैं.
‘तेरे बिना आग ये चाँदनी’ और बादमें आनेवाला ‘घर आया मेरा परदेसी’ – आवारा का यह भव्य ‘स्वप्न दृश्य गीत’ सिर्फ़ ‘न भूतो न भविष्यती’ … फिर कविराज और एस-जे लाजवाब,
‘हम तुझसे मोहब्बत करके सनम’,
‘रात अँधेरी दूर सवेरा’
‘आजा रे अब मेरा दिल पुकारा’ – हसरत साब सिर्फ़ रोमँटिक शायर नही बल्कि सिद्धहस्त कवि थे …ये दर्दभरे गीत उनकी क़ाबिलियत की पुष्टी करते है.
‘अजहूँ ना आएँ बालमा’ – यह हसरत साहब की शास्त्रीय रचना अभी भी उतनी ही ताजगीभरी.
‘चाहे कोई मुझे जंगली कहे’ – सिर्फ़ और सिर्फ़ शम्मी कपूर के लिए बनाया गया.
‘जानेवाले ज़रा होशियार’ – सॅक्सोफोन मस्त, ‘राजकुमार’ शम्मी कपूर’ छा गए थे.
आसमान से आया फरिश्ता’ – मदमस्त संगीत एस-जे का, ऐसे स्टंटस् उस दौर में शम्मी कपूर की ख़ासियत.
‘बदन पे सितारें’ – ‘एस-जे’ का झक्कास ऑर्केस्ट्रा.
‘खुली पलक में झूठा गुस्सा’ – वाकई जीना भी मुश्क़िल मरना भी मुश्क़िल कर दिया था एस-जे ने.
‘मेरी मोहब्बत’, ‘एहसान तेरा होगा मुझपर’, ‘तुम मुझे यूँ भूला ना पाओगे’ – भावुक ‘शम्मी’ गीत.
कविराज १९६६ में तो जयभाई १९७१ में, शंकर जी, हसरत साहब से, अलविदा कहकर इस दुनिया से चल दिये … महफ़िल सुनी सुनी हो गई थी … शंकर जी तन्हा हो गए थे … पहली मुलाक़ात से १९७१ तक उन्होंने
जयकिशन जी को अपने छोटे भाई की तरह संभाला था … जयसाहब – पल्लवी जी की शादी में ‘कन्यादान’ की रस्म शंकरजी ने ही पूरी की थी …जयभाई मिलनसार व्यक्ति थे, फुरसद में फ़िल्म जगत की पार्टियों में जाते थे … तो शंकरजी ज़्यादा उन व्यक्तियों से मिलते थे जो संगीत जगत से संबंधित थे … फुरसद में भी संगीत की बारीकियां सीखते रहते … दोनों १० – १२ वाद्य बजाना सीखें थे … शंकरजी कुश्ती के शौक़ीन थे और ‘भरत नाट्यम’ में महारत हासिल थी … दोनों दिलदार थे …सामाजिक कार्यों में हमेशा आगे रहते थे … जयभाई का साथ छूटने के बाद शंकरजी ‘एस-जे’ के नाम से ही संगीत देते रहे और उनके पारिश्रमिक का आधा हिस्सा पल्लवी जी को पहुंचाते रहे …आखरी दिनों में सब क़रीबी दोस्त दूर हो गए थे, लेकिन वोह एक बहादुर योद्धा
थे … अपने नाम के अनुसार ज़हर के घूंट पीते रहे …और अपना ग़म छुपाते रहे … हसरत साहब ही थे उनके साथ आख़री समय तक … २६ अप्रेल १९८७ को शंकर जी भी चले गए दुनिया से विदा लेकर और उनके साथ संगीत का सुरीला सफ़र ख़त्म हुआ … दास्ताँ खत्म हुई पर उनका संगीत अमर हैं, और सदियों तक रहेगा !
सच कहूँ तो … ‘एस-जे’, उनका अद्वितीय संगीत यह क़िताब का विषय है, उनके सभी गीतों का यहाँ ज़िक्र और मूल्यमापन करना असंभव बात है … १९४९ में शंकर – जयकिशन – कविराज – हसरत यह चार असामान्य कलाकार दुनिया के सामने आएं, राज कपूर साहब की बरसात में … बरसात से ही ‘संगीत सुवर्ण युग’ शुरू हुआ … अगले २० – २२ साल सर्वोत्तम हिंदी सिने गीत संगीत निर्मिती करके इन ‘FANTASTIC FOUR‘ ने उनके गीत -संगीत द्वारा अन्य संगीतकारों के मुक़ाबले, इस ‘सुवर्ण युग’ को सबसे ज्यादह चमक दी, ऐसा कहा जाएं, तो ज्यादती नही होगी … ‘कविराज’ शैलेंद्र – ‘राजकवि’ हसरत जयपुरी और अन्य गीतकारों ने आशयपूर्ण, समर्पक गीत लिख कर उन्हें समर्थ साथ दिली … एस-जे ने उनके संगीत निर्देशन में सभी गायिका/गायकों से बेहतरीन गंवाया था, उनकी आवाज़ का सही उपयोग किया था … लता, आशा, मन्ना दा, मुकेश, रफ़ी साहब, सुमन कल्याणपुर, शारदा जी इनके गायें गीत सर्वाधिक लोकप्रिय हुए थे मूल संगीत का ढांचा, नींव कायम रख कर, पारंपरिक साजों के साथ आधुनिक साजों का मिलाफ़ कर, गीतों को नया रूप देने वाले एस-जें ही थे, उनकी ज़्यादातर रचनाएँ रागदारी पर आधारित थी, गीत की प्रस्तावना (Prelude), मुखड़े और अंतरे के बीच का संगीत (Interlude), तथा गीत का अंत इन तीनों में मास्टर्स रहें, … हिंदी फिल्मों के ‘सुवर्ण संगीत युग’ के आधुनिक शिल्पकार, विविधतापूर्ण संगीत निर्मिती करनेवाले,
‘चक्रवर्ती संगीत सम्राट’ ‘एस-जें’ को, ‘कविराज शैलेंद्र’, हसरत साहब को सब संगीत प्रेमियों का सलाम …!
Sudhakar Shahane