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शंकर जयकिशन🎸 और उनका संगीत

By Shyam Shanker Sharma

शंकर जयकिशन🎸 और उनका संगीत
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हिंदी फ़िल्म जगत का संगीत 1950 से 1970 तक यानी पूरे 20 वर्ष का संगीत शंकर जयकिशन के नाम रहा,1971 में जयकिशनजी के आकस्मिक निधन के बाद भी 1970 से 1980 तक शंकर जयकिशनजी का संगीत रथ अपने अलग अंदाज़ में अपनी पहचान बनाये रखने में कामयाब रहा और यही नहीं 1980 से 1990 के मध्य भी उनकी उपस्थिति दर्ज होती रही।शंकर जी के देहावसान के बाद ही उनका संगीत रथ जो 1949 से गतिवान हुआ था थम गया। जीवन का अंत एक सत्य प्रक्रिया है,किन्तु कुछ लोग अपने कार्यो के कारण मर कर भी अपना अस्तित्व बनाये रखते है उनमे स्वर्णिम नाम शंकर जयकिशनजी का है जिन्होंने अपने विविधता भरे प्रायोगिक संगीत से हिंदी फ़िल्म संगीत का नक्शा ही बदल दिया और उसे अपने संगीत की परिभाषा प्रदान की जो सभी के दिलो में राज करने में सफल रहा! आखिर ऐसा क्या जादू था उनके पास! या कोई अलादीन का चिराग था जो वो चाहते वैसा ही संगीत उत्पन्न हो जाता।संगीत में जादू तो होता है जो प्रायः आम प्रचलन में कहा जाता है किन्तु वास्तव में यह एक तपस्या है संगीत की साधना है उसके प्रति सम्पूर्ण सृजन है।शंकर जयकिशनजी जिज्ञासु प्रवति के संगीत साधक थे।जिज्ञासा तो बस उनके लिए संगीत ज्ञान के लिए अभीप्सा थी,पुकार थी त्वरा थी,उसी के दम पर उन्होंने लगभग 36 वर्षो तक अपना वजूद बनाये रखा और भारतीय फ़िल्म इतिहास के एक मात्र ऐसे संगीतकार बने जिनके पास काम सदा आता रहा बिना मांगे और अंतिम साँस तक! वह ज्ञानी संगीतकार थे और ज्ञानी सरल और छोटे बच्चों की मानिंद होता है….सदा ही सिखने को उत्सुक!ज्ञानी का सही अर्थ है ध्यानी..जो ध्यान पूर्ण है,वही ज्ञान पूर्ण है।इसी कारण इस जोड़ी को सर्वाधिक बार फ़िल्म फेयर अवार्ड्स से नवाजा गया ,पद्मश्री से सम्मानित होने वाले प्रथम संगीतकार बने। इनके हिट गानो की फेहरिस्त इतनी लंबी है जो उन्हें सर्व श्रेष्ठ स्थापित करती है।
अक्सर यह कहा जाता रहा है कि शंकर जयकिशन को राजकपूर ने बनाया जो संगीत की गहराइयो को समझतें थे पर में इससे सहमत नहीं हूँ!हाँ राजकपूर ने उन्हें अवसर दिया और अवसर उसी को प्राप्त होता है जो उसके योग्य हो।राज कपूर की कुल 19 फिल्मो में शंकर जयकिशनजी ने संगीत दिया जिसमे 9 फिल्मे RK के बैनर तले बनी और प्रायःसभी फिल्मो का संगीत हिट रहा किन्तु शेष लगभग 165 फिल्मो का संगीत शंकर जयकिशन ने RK की फिल्मो के अतिरिक्त दिया और वो बिना राजकपूर के अन्य फिल्मो में सुपरहिट संगीत प्रदान करने में सफल रहे,जो उनकी काबिलियत को दर्शाता है। अगर राजकपूर संगीत का इतना गंभीर ज्ञान रखते थे तो उन्हें कम से कम से कम एक फ़िल्म में तो संगीत देकर स्वयं को साबित तो करना चाहिए था जैसा कि किशोर कुमार ने दूर गगन की छाँव में, झुमरू इत्यादि फिल्मो में देकर स्वयं को प्रमाणित किया!वस्तुतः राजकपूर ने उनके संगीत का दोहन कर अपने संगीत बैंक को भर लिया और सफल व्यवसायी बन गए जिसका उपयोग वो राम तेरी गंगा मैली तक करते रहे ,शायद अब भी वह संगीत खज़ाना कई मासूम धुनों को समेटे धूल खा रहा होगा।शंकर जयकिशन राजकपूर के मासिक वेतन भोगी संगीतकार थे जिनसे RK जमकर काम लेते थे और दूसरी फिल्मो के लिए शंकर जयकिशनजी को पर्याप्त समय मिल ही नहीं पाता था,फिर भी शेष बचे हुए समय का शानंदार उपयोग करने में उन्होंने कमी नहीं छोड़ी और सफलता का शिखर पर जा पहुंचे।सच मे महसूस किया जाय तो संसार की सबसे खूबसूरत और दर्शन आधारित फ़िल्म मेरा नाम जोकर ने सभी न केवल राज कपूर को बर्बाद कर दिया अपितु यह फ़िल्म शैलेन्द्र और शंकर जयकिशनजी को भी नुक्सान पहुँचाने वाली फ़िल्म साबित हुई।जोकर में व्यस्त होने के बाद राजकपूर फ़िल्म तीसरी कसम को समय ही नहीं दे पा रहे थे जिससे शैलेन्द्र जी की फ़िल्म समय पर तैयार ही नहीं हो पाई और अधिक समय के कारण उनका बजट बिगड़ गया,फ़िल्म का सही समय पर रिलीज नहीं होना शैलेन्द्र जी को भारी पड़ा और एक यादगार बेहतरीन फ़िल्म फ्लॉप हो गयी और उसी गम में वो चल बसे।6 वर्षो तक शंकर जयकिशनजी को भी जोकर में व्यस्त रहना पड़ा इस कारण वो अन्य फिल्मो के साथ न्याय नहीं कर पा रहे थे और दूसरे संगीतकार इस अवसर का पूरा लाभ उठा रहे थे और अपने पैर ज़माने में सफल हो रहे थे।और फिर आई चिर प्रतिक्षीत फ़िल्म जोकर जो बुरीतरह फ्लॉप हो गयी! जयकिशन जी का भी निधन हो गया और एक युग की समाप्ति हो गयी,राज कपूर बर्बाद हो गए।पर तीसरी कसम और मेरा नाम जोकर के बुरी तरह फ्लॉप हो जाने के बावजूद भी इनका संगीत अजर अमर था और आज भी जीवंत है दोनों ही फिल्मो ने कई पुरस्कार बटोरे तीसरी कसम को सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का पुरुस्कार मिला तो ऋषि कपूर को बालकलाकार का राष्ट्रीय पुरूस्कार मिला।और शंकर जयकिशनजी को क्या मिला! अपनों से जख्म? यही पीड़ा है कि आज कल अपनों से ज्यादा जख्म मिलते है