Category Archives: Book Review on Shanker Jaikishen

Awara Hoon – 73 years old Young creation

“Awaara Hoon….” is a legendary Bollywood song from the film ‘Awaara’, released in 1951. The song is composed by Shankar Jaikishan, with lyrics penned by Shailendra. It features the iconic actor Raj Kapoor, who also directed the film, and is sung by the legendary playback singer Mukesh. “Awaara Hoon” remains one of the most enduring and beloved songs in Indian cinema.

Lyrically, “Awaara Hoon” captures the essence of a free-spirited wanderer, celebrating his carefree and nomadic lifestyle. The song explores the themes of love, longing, and societal alienation, resonating with audiences even to this day. Shailendra’s poetic lyrics beautifully convey the emotions of the protagonist, blending melancholy with a sense of liberation.

Musically, the song showcases the brilliance of Shankar Jaikishan, who were known for their innovative compositions. “Awaara Hoon” features a memorable melody with a distinct Indian classical influence. The opening strains of the accordion create a haunting and melancholic atmosphere, setting the tone for the song. The orchestration gradually builds up, incorporating various instruments like the sitar, harmonium, and tabla, adding depth and richness to the composition.

Mukesh’s soulful rendition brings the character to life, infusing the song with raw emotion. His deep and resonant voice perfectly captures the inner turmoil and vulnerability of the protagonist. The simplicity and sincerity in his delivery strike a chord with listeners, making “Awaara Hoon” an unforgettable musical experience.

The picturization of “Awaara Hoon” further enhances its impact. Raj Kapoor’s charismatic on-screen presence and expressive acting elevate the song to another level. The black and white cinematography, combined with the picturesque settings, create a timeless visual appeal. The song’s choreography, characterized by Raj Kapoor’s signature dance moves, adds charm and liveliness to the performance.

Apart from its musical and cinematic brilliance, “Awaara Hoon” holds significant cultural and social relevance. It captures the essence of the post-independence era in India, exploring themes of poverty, injustice, and the struggles of the working class. The song struck a chord with the masses, who found solace and identification with the portrayal of societal issues.

Even after several decades, “Awaara Hoon” continues to be celebrated and cherished. Its popularity has transcended generations, and the song remains an integral part of Bollywood’s musical legacy. It serves as a reminder of the power of music to convey complex emotions, evoke nostalgia, and resonate with audiences across time.

With its poignant lyrics, soulful rendition, and memorable composition, the song has left an indelible mark on Indian cinema. It encapsulates the spirit of the era while addressing timeless themes, making it a timeless classic that continues to captivate listeners even after decades of its release.

Contributed by Dr. D. G. Deshpande

AwaaraHoon #BollywoodClassic #1954Melody #TimelessCharm #MusicalMasterpiece

पुस्तक समीक्षा – संगीत भावनामृत

पुस्तक समीक्षा – शंकर-जयकिशन 
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भारतीय सिनेमा में गीत-संगीत फ़िल्म में प्राण वायु के समान हैं। ‘आलम आरा’ (1931) से जब हिन्दी सिनेमा ने पहली बार बतियाना प्रारम्भ किया था तब से ही उसने गीत गाना भी प्रारम्भ कर दिया था। अपने उद्भव के प्रथम दशक में ही सिने गीत-संगीत की प्रथम महत्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में जिस एक उपहार ने फ़िल्म संगीत को नूतन विधा के रूप में स्थापित कर वर्ष प्रति वर्ष इसकी जीवन्त उपलब्धियों का मार्ग प्रशस्त किया वह था सिनेमा में पार्श्व गायन विधा का श्री गणेश।
पार्श्व गायन विधा के आगमन से हिन्दी सिनेमा में उन ढेरों गायक-गायिकाओं को विस्तृत व्योम प्राप्त हुआ जो अभिनय की सहज पूँजी से वँचित थे। इस विधा ने संगीतकारों के लिए भी एक नया द्वार खोल दिया था जिसके द्वारा वे अपनी संगीत रचना को सुर-सरगम से युक्त स्वरों से सुसज्जित करने को स्वतन्त्र थे। तब कुन्दन लाल सहगल ही एकमात्र ऐसे व्यक्तित्व थे जो अभिनय एवं गायन में समान रूप से सिद्ध थे। अपनी इस विशिष्ट क्षमता से सहगल का नायक-गायक के रूप में बोलती सिनेमा के प्रथम दो दशक की अवधि में पूर्ण रूप से वर्चस्व रहा। इन प्रारम्भिक दो दशकों में सिने गीत-संगीत की धारा अपने प्रवाह में सुरीलेपन के जिस तत्व को ले कर आगे बढ़ रही थी उसकी गति मन्द-मन्द होते हुये एक सीमित आयाम में बँधी हुयी थी। हिन्दी सिनेमा में संगीत की इसी मन्द गति को त्वरित वेग प्रदान करते हुये उसके सुरीलेपन को नूतन आयाम देने का कार्य अकस्मात् ही अस्तित्व में आया था। तब संगीत के स्थापित महारथियों को रातों-रात विस्मय में डालते हुये युवा संगीतकार जोड़े शंकर और जयकिशन ने सरगम के जिस तार को झंकृत कर सुरों की अनोखी बरसात की थी वह आज भी संगीत रसिकों को भिगोये हुये है। पार्श्व गायन विधा से परिचित होने के पश्चात् भारतीय सिनेमा की यह दूसरी सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना थी।
यह शंकर-जयकिशन के संगीत का अपूर्व आभा मण्डल ही था जिसके प्रभाव से उन्होंने भारतीय हिन्दी सिने गीत-संगीत के व्योम पर अपने प्रथम प्रयास में ही राष्ट्रीय स्तर पर अपनी सशक्त उपस्थिति अंकित कर ली थी। राज कपूर के ‘आर के बैनर’ की छत्र-छाया में मुकेश, हसरत जयपुरी, शैलेन्द्र और शंकर-जयकिशन भारत में संगीत के श्रेष्ठ उदीयमान समूह के रूप में स्थापित हो चुके थे। तब इस समूह में युवा गायक मुकेश ही एकमात्र ऐसे व्यक्तित्व थे जो राष्ट्रीय स्तर पर पूर्व में ही लोकप्रियता का स्वाद चख चुके थे। राज कपूर के साथ ही शंकर-जयकिशन, शैलेन्द्र, हसरत और लता मँगेशकर ‘बरसात’ की अपार सफलता से अभिभूत हो चुके थे। ‘आवारा’ के प्रदर्शित होते ही भारतीय सिने संगीत ने वैश्विक व्योम पर जब अपनी उपस्थिति अंकित की तब हिन्दुस्तानी गीत-संगीत का विश्व समुदाय से प्रथम साक्षात्कार एक अद्भुत घटना थी। भारत में शंकर-जयकिशन प्रथम ऐसे संगीतकार बन चुके थे जो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान स्थापित करने में सफल हुये थे।
भारतीय सिनेमा के ऐसे प्रथम वैश्विक संगीतकार शंकर-जयकिशन पर यूँ तो बहुत कुछ लिखा, पढ़ा और गुना गया है पर उनके कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर नवीनतम विस्तृत शोधपूर्ण प्रकाश डालने का कार्य पुस्तक के माध्यम से इसी वर्ष किया गया है। ‘शंकर जयकिशन फ़ाउण्डेशन’, अहमदाबाद द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘संगीत भावनामृत’ शंकर-जयकिशन के जीवन और संगीत पर आधारित एक महत्वपूर्ण पुस्तक है। संगीत समालोचक-लेखक श्याम शंकर शर्मा द्वारा लिखित इस पुस्तक में संगीत समीक्षा का पक्ष प्रसिद्ध लेखक-समीक्षक डॉ पद्मनाभ जोशी ने प्रस्तुत किया है। पुस्तक के प्रथम भाग में शंकर-जयकिशन के संगीत से सजी पच्चीस प्रमुख फ़िल्मों के संगीत पक्ष की विस्तृत विवेचना प्रस्तुत की गयी है। एक-एक गीत की व्याख्या और उसमें निहित संगीत के तत्वों के संग ही गीत का भाव पक्ष, उसका निरूपण तथा फ़िल्म में इसकी प्रस्तुति सहित अन्य सम्बन्धित तत्वों पर की गयी व्याख्या शंकर-जयकिशन के कृतित्व के ढेरों आयाम से पाठकों को यह पुस्तक सहज रूप से परिचित कराती है। शंकर-जयकिशन के जीवन और उनकी संगीत यात्रा पर एक विहँगम दृष्टि डालते हुये इस पुस्तक में उनके गायक कलाकारों, संगीत सहायकों एवं प्रस्तुतियों पर विस्तृत चर्चा की गयी है। संगीत प्रेमियों के लिये यह सूचना सुखद होगी कि यह पुस्तक शंकर-जयकिशन पर आने वाली अन्य कई पुस्तकों की कड़ी में प्रथम भाग है। इसी क्रम में ‘शंकर जयकिशन फ़ाउण्डेशन’ द्वारा पुस्तकों के कई और भाग शीघ्र ही प्रकाशित किये जायेंगे जिनमें शंकर-जयकिशन के संगीत साम्राज्य के अन्य आयामों की चर्चा होगी।
इसके पूर्व शंकर-जयकिशन पर श्याम शंकर शर्मा की प्रथम पुस्तक ‘संगीत सागर’ का प्रकाशन ‘शंकर जयकिशन फ़ाउण्डेशन’ के सहयोग से किया जा चुका है। इस पुस्तक में शंकर-जयकिशन के जीवन, उनके संगी-साथी, गायक-गायिका, वादकों, निर्माता-निर्देशक, उपलब्धियों, उतार-चढ़ाव तथा उनके संगीत का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। उपलब्ध सूचना तथा आँकड़ों को आधार बना कर पुस्तक में उन पक्षों पर भी लेखनी चलायी गयी है जो भावनात्मक स्तर पर किसी को भी उद्वेलित कर सकते हैं। शंकर-जयकिशन पर अपार श्रद्धा का ही यह परिणाम है कि विश्व भर में फैले शंकर-जयकिशन के लाखों-करोड़ों प्रशंसकों के मध्य काल के भाल पर स्थायी रूप से अंकित संगीत के इस चक्रवर्ती सम्राट पर उपलब्ध सूक्ष्म से सूक्ष्म सूचना भी इस पुस्तक के माध्यम से एक-एक संगीत रसिक को सहज ही आकर्षित करती है। इस पुस्तक में देश-विदेश में कार्यरत शंकर-जयकिशन पर स्थापित की गयीं संस्थाओं, उनके सक्रिय सदस्यों के सम्बन्ध में भी जानकारी दी गयी है जो इस बात का प्रमाण है कि विश्व के प्रत्येक कोने में आज भी भले ही पृथक-पृथक संस्थाएँ अपने-अपने उद्देश्यों के संग शंकर-जयकिशन के संगीत पर कार्यरत हैं पर मूल रूप से ये सभी एक ही सूत्र में बँध कर शंकर-जयकिशन के समृद्ध धरोहर एवं परम्परा को और भी विशाल व्योम एवं विस्तृत धरातल प्रदान कर रहे हैं। अहमदाबाद के स्नेहल पटेल, चिराग पटेल, उदय जोगलेकर, कोलकाता के सुदर्शन पाण्डे, अमरीका की लक्ष्मी कान्ता तुमाला सहित अन्य नगर, प्रान्तों में सक्रिय शंकर-जयकिशन प्रेमी का इस दिशा में समर्पित कार्य प्रस्तुत पुस्तक में अंकित किया गया है।
यशस्वी वैश्विक संगीतकार शंकर-जयकिशन के संगीत साम्राज्य पर अभी ऐसी ही और भी ढेरों पुस्तकें, वृत्तचित्र तथा समारोह का लेखन, निर्माण एवं आयोजन शेष है जो निःसन्देह इस विलक्षण प्रयोगवादी शाश्वत संगीतकार के आभा मण्डल का द्योतक है। सभी संगीत प्रेमियों के लिये ये पुस्तकें संग्रहणीय हैं।
डॉ राजीव श्रीवास्तव
[पुस्तक: संगीत भावनामृत, लेखक: श्याम शंकर शर्मा, पृष्ठ: 371, प्रकाशक: शंकर जयकिशन फ़ाउण्डेशन, ग्राउंड फ़्लोर, प्रवेश अपार्टमेंट, 10, महादेव नगर सोसायटी, सरदार पटेल सटेच्यू के निकट, अहमदाबाद – 380014, दूरभाष: 079-26440618]
[पुस्तक: संगीत सागर, लेखक: श्याम शंकर शर्मा, पृष्ठ: 369, प्रकाशक: एस एस शर्मा, 93, आनन्द विहार-ए, दादी का फाटक, बेनाड़ रोड, झोटवाड़ा, जयपुर – 302012, दूरभाष: 09352662701 , 08107219028]

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जो भी वास्तविक शंकरजयकिशन प्रेमी है,वह उक्त दोनों पुस्तके निशुल्क श्री हिरेन पटेल जी से निम्न फ़ोन पर संपर्क कर प्राप्त कर सकते है।
919081965050