Written by Vineet Srivastav
सुरमित्रों
रहिमन देख बड़न को,लघु न दीजे टार।
जंहा काम आए सुई,वँहा का करे तलवार।
मतलब सफा-साफ है, के श्रीमान रहीम,ये बात,सदियों पहले समझा गए थे के भैया बड़ों के चक्कर में छोटे को अनदेखा न करो,क्योंकि जंहा सुई काम आती है, वँहा तलवार क्या करेगी???ये विचारणीय,सोचनीय प्रश्न उतपन्न हो गया 1964 की ब्लॉक बस्टर फ़िल्म”राजकुमार” के दौरान।किस्सा कुछ यूं हुआ कि फ़िल्म के निर्माण के समय लता जी ने रफ़ी साहब के साथ कुछ मतभेदों के चलते डुएट गानों को गाने में असहजता प्रगट कर दी थी।सोलो गाने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं थी।दो-एक गाने इसीलिए सुमन जी के हिस्से आये। पेंच फंस गया, शंकर जयकिशन जी के सामने,जब सिचुएशन मुताबिक एक सेडयूसिंग सॉन्ग याने कामुकता का गाना प्लान हुआ।अब इस टाइप के गाने न तो लता जी गातीं थीं,न ही सुमन जी और न ही दोनों की वॉइस में वो टिम्बर-टेक्ष्चर (timber texture) था जो उत्तेजकता,कामुकता को असली रंग में रंग दे।मरता क्या न करता।लगाया गया फोन आशाजी को।आशाजी ने कहा,हूँ, गा तो दूंगी मैं पर फीस दीदी से 5 गुना लूंगी।बेचारे मद्रास प्रोडक्शन वाले सर पीटने लगे।मामला जा पहुंचा शम्मी अंकल के पास।शम्मी जी ने आशा जी की बात का समर्थन किया और कहा कि वो हैं हीं इस काबिल जो, एकमात्र इस गाने के लायक हैं।यदि गाना रखना है तो बुलाओ उसे,भले मेरी फीस कुछ कम दे देना।शंकर जयकिशन जी ने इस सिचुएशन के लिए एक POLYNESIAN रिदम-तर्ज़ सोच रखी थी।अब ये पोलिनेशियन क्या बला है??तो सुरमित्रों, प्रशांत महासागर याने PECIFIC SEE में एक टापुओं का ग्रुप है,उसमें बसने वाले सब Iseland वाले ही POLYNESIAN कहलाते हैं।हवाईन द्वीप भी उसी ग्रुप में है।अब इस किस्म की ट्यून पर उसी किस्म की रिदम ही फबती।तो ऐसे में सिर्फ और सिर्फ एक ही नाम था इंडस्ट्री में जो इसे सरअंजाम दे सके।क़ावस काका उर्फ क़ावस लार्ड।बॉंगो ड्रम के अन्य प्लेयर उनके पाये के नीचे थे सब।सुविख्यात म्यूजिशियन करसि एवम बर्जर,क़ावस लार्ड के सुपुत्र हैं।क़ावस काका ने बॉंगो ड्रम्स से हिंदी फिल्म्स सिने संगीत में ऐसा समां बांधा,के हर संगीतकार उनकी प्रतीक्षा में रहता था।यंहा प्रसंगवश सूरत के सुरमित्र,श्री जॉय क्रिस्टी जी का जिक्र छेड़ूँगा,जिन्होंने मुझे गत दिनों उनके द्वारा बॉंगो पर बजाया गया एक छोटा रिदम ग्रूव भेजा।मैं उनके फिंगर्स रोल्स से जो बॉंगो के मैचो साइड यानी छोटे डाय फ्रेम वाला ड्रम,पर लिया जाता है,से खासा प्रभावित हुआ।उसी तारतम्य में अहमदाबाद के श्री अकुल रावल ने भी बॉंगों पे सिद्धहस्त करतब बजाये।बड़े डाय फ्रेम को हैम्ब्रा कहते हैं,जिससे बास टोन और मैचो से शार्प टोन साउंड करती है,और प्रस्तुत गीत में जम के मैचो पर करतब बजाये गए हैं।तो सुरमित्रों,ये पोलिनेशियन मेलोडी शुरू होती है,अजीब से हंटरों की आवाज़ से और सिसकियों से।इसका भी विचित्र किस्सा है।वो यूँ के फ़िल्म की स्टोरी-प्लाट में राजकुमार को एक क़बीले की राजकुमारी कैद कर लेती है व फिर कैद से रिहाई कर राजकुमार के संग गुफ़ा में जाती है।गुफ़ा के अंदर से हंटरों की व राजकुमारी की सिसकियों की आवाज़ आती है।यूँ ये अनोखा ही गाना है,जिसके प्रिल्यूड में कोड़े बरसाए गए हैं।सुनिए इन हंटरों का किस्सा।बकौल शम्मी अंकल,”I was so inspired of Roman Cupid love hunter paintings,so I suggested this frame with Roman Lyre strings instruments.S-J had a wonderful insipiration,of a Polyasian tune and rhythm,so the melody became symbol of passionate desire and erotic love”आशा जीDmदिलरुबा दिल पे तूGmये सितम Cकिये जाDmकिये जारफ़ी साहबDmहम भी तो आग में जलते रहेAप्यार के शोलों पे चलते रहेA7thओ हो हो होDmM1 में जो मैं बताना चाहता हूं वो आपको तो सुनना ही होगा।ड्रम्स और बॉंगों कि जबरदस्त पेयरिंग है।बॉंगो के मैचो ड्रम पर फिंगर्स रोल्स अद्भुद हैं।शॉट में राजकुमारी की सहेलियां कमर से ड्रम्स लटकाए हुए हैं और Roman Lyre Harp को छेड़ रहीं हैं।Dm क्या बताऊँ क्या दिल का हाल हैजिस घड़ी से मिले हमGmC जैसे सैकड़ों बिजलियाँ गिरींऔर जल उठे हमdd cc a/dd cc a/dd cc a abee d dc/ee dd ce e d c e dDmहाय, क्यूं मुझे खाक करने पे तुले हो जालिम!!!आखिर क्या बिगाड़ा है,मैंने तुम्हारा?????हहह!!!वाह,क्या लगभग बुदबुदाते हुए WHISPERING DIALOGUE हैं।और ये हर अन्तरेके आखिरी में रखे गए हैं।ऐसा व्हिस्पर+डायलॉग फॉर्म तो नायाब है हिंदी सिने संगीत इंडस्ट्री में।वैसे इसे हम फर्स्ट OPERA LIBRETTO कहें इंडस्ट्री का।Libretto में Prose फॉर्म याने गद्य को गाया जाता है।इस whisper से ही कटऑफ है,फिर वापस मुखड़ा आता हैदिलरुबा दिल पे तूM2 में वापस वही ड्रम्स-बोंगॉ की जुगलबंदी।दूसरे स्टेन्ज़ा को आशाजी ने बेहद सेक्सी अंदाज़ में गाया है।कॉर्ड्स प्रोग्रेशन तो पहले जैसे हैं तो सिर्फ बोलों में फर्क है पर इसके इंटरल्यूड में गिटार के Sonata के बाद जो रफ़ी साहब ने मद्धम स्वरों में बुदबुदाया है न!उसे सुन कर कृतार्थ हो जाएंगे आप,ये नाचीज़ का दावा है।हाय दिल की गहराइयों को चीरता हुआ ये दर्द,ये कसक,ये चुभनM3 में फिर वही ड्रम्स-बॉंगों की पेशकश ये साबित करती है कि मेलोडी खड़ी ही है,इस पोलिनेशियन बॉंगो रिदम स्ट्रक्चर पर।इस स्टेन्ज़ा में हिंदी सिने संगीत का पहला रोमांटिक कन्वर्सेशन रफ़ी साहब-आशाजी ने बखूबी फुसफुसाया है।कान लगा कर मस्त सुनिए।एक और नायाब हरकत ली रफ़ी साहब ने जब आखिर में अति उच्च तार सप्तक याने Falesetto pitchपर गाया है।हम भी तो आग पे जलते रहेप्यार के शोलों पे चलते रहेओ हो हो होDmCoda music में दिलीप नाइक सर ने मेलिडी को e guitar पर ले कर fade out किया।ये गाना मेरा भी फर्स्ट लेसन था रायपुरCG के लिजेंड्री गिटारिस्ट व रिदमिस्ट, स्व रोमियो जेकब सर से।
आपका सुरमित्र
विनीत श्रीवास्तव